हमारे भारत देश में लोकतंत्र केवल नाम का है; वह केवल चुनाव और मतदान तक ही सीमित है। यह वास्तव में पूंजीवाद है। सत्ता और संपत्ति पूंजीपतियों में निहित है। चुनाव वही लड़ सकता है और जीत सकता है जिसके पास पैसा है। आम आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता और अगर लड़ भी ले तो जीत नहीं सकता। जिस शासन व्यवस्था में देश का प्रत्येक नागरिक आर्थिक रूप से सक्षम हो उसे हम आदर्श लोकतंत्र कह सकते हैं।
जापान में सामूहिक पूंजीवाद है। जापान ने न्यूनतम धनराशि के लिए एक बुनियादी वित्तीय सीमा निर्धारित की है जिससे देश का प्रत्येक नागरिक सुखी और समृद्ध जीवन जी सके। वहां अधिकारियों और सफाईकर्मियों का मूल वेतन एक समान है; क्योंकि काम में ऊंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है। प्रत्येक कार्य को पवित्र माना जाता है और उसकी उपयोगिता देखी जाती है। सभी कार्य समान गुणवत्ता वाले हैं केवल उनकी उपयोगिता अलग-अलग है। इसलिए, अधिकारी के लिए उच्च वेतन और सफाई कर्मचारी के लिए कम वेतन का कोई अनुचित भेदभाव नहीं है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसी व्यवस्था सिद्ध पुरुष के साथ अन्याय नहीं करती? तो नहीं; क्योंकि वहां कार्य की उत्कृष्टता के अनुसार मूल वेतन के अतिरिक्त, अतिरिक्त वेतन देने की सुविधा विकसित की गई है। अब, कार्य में उत्कृष्टता कैसे निर्धारित की जाती है? हमारी तरह स्कूल की शैक्षणिक डिग्रियों के अनुसार नहीं; कार्य का महत्व कार्य में प्रयुक्त बुद्धि, कार्य की गुणवत्ता, कार्य की उपयोगिता, कार्य में कुशलता, कार्य में शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक परिश्रम के अनुसार निर्धारित होता है और उसी के अनुसार उस कार्य की श्रेष्ठता निर्धारित की जाती है और उस श्रेष्ठता के अनुसार उस कार्य के लिए बढ़ा हुआ अतिरिक्त वेतन दिया जाता है। इसके अलावा, आय की अधिकतम और न्यूनतम सीमा भी है। सीमा से अधिक पैसा सरकार द्वारा एकत्र किया जाता है और उन लोगों को दिया जाता है जो न्यूनतम सीमा से कम कमाते हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था को संतुलित रखा जाता है। वे केवल स्कूली शिक्षा के आधार पर आर्थिक असमानताएँ पैदा करना स्वीकार नहीं करते हैं; क्योंकि उनके अनुसार स्कूली शिक्षा, शिक्षा की केवल एक शाखा है और शिक्षा अनन्त है। उनकी शिक्षा की सार्थक, आदर्श एवं व्यापक परिभाषा है- ‘किसी भी कार्य में कुशलता प्राप्त करने के लिए हम उस कार्य के अनुभव से जो सीखते हैं, जो अनुभवजन्य ज्ञान प्राप्त करते हैं,इसे शिक्षा कहा जाता है।’
देश की धन-संपदा के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं, बल्कि सामूहिक स्वामित्व होता है। वहां वैचारिक धारणा है, कि यदि देश सबका है, तो देश पर सबका समान अधिकार होना चाहिए, और देश पर सबका समान अधिकार है, तो देश के संसाधनों पर भी सबका समान अधिकार होना चाहिए। इसी आदर्श साम्यवादी विचारधारा की वकालत करके जापान ने अपने देश में गरीबी मिटाई है और इसी आदर्श व्यवस्था की वकालत करके हमारे देश में भी गरीबी मिटाई जा सकती है।
इस अवधारणा से, इस आदर्श नवाचार के लिए हमारे गरीबी-उन्मूलन यानी आर्थिक असमानता-विरोधी आंदोलन का बीजारोपण शुरू हो गया है।
धन्यवाद
अरुण रामचंद्र पांगारकर
(गरीबी उन्मूलन आंदोलन यानी आर्थिक असमानता विरोधी आंदोलन के अग्रणी)